महाभारतम्-08-कर्णपर्व-008

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कर्णार्जुनाक्ष्यां व्यूहरचनापूर्वकं रणाय निर्याणम्।। 1 ।।

धृतराष्ट्र उवाच। 8-8-1x
सैनापत्यं तु सम्प्राप्य कर्णो वैकर्तनस्तदा।
तथोक्तश्च स्वयं राज्ञा स्निग्धं भ्रातृसमं वचः।।
8-8-1a
8-8-1b
हितश्च प्रियकामश्च मम पुत्रस्य नित्यशः।
अकरोत्किं महाप्राज्ञस्तन्ममाचक्ष्व स़ञ्जय।।
8-8-2a
8-8-2b
सञ्जय उवाच। 8-8-3x
कर्णस्य मतमाज्ञाय पुत्रास्ते भरतर्षभ।
योगमाज्ञापयामासुर्नन्दितूर्यपुरःसरम्।।
8-8-3a
8-8-3b
महत्यपररात्रे च तव सैन्यस्य मारिष।
योगो योग इति ह्याशु प्रादुरासीन्महास्वनः।।
8-8-4a
8-8-4b
कल्पतां नागमुख्यानां रथानां च वरुथिनाम्।
सन्नह्यतां नराणां च वाजिनां च विशाम्पते।।
8-8-5a
8-8-5b
क्रोशतां चैव योधानां त्वरितानां परस्परम्‌।
बभूव तुमुलः शब्दो दिवस्पृक्सुमहांस्ततः।।
8-8-6a
8-8-6b
ततः श्वेतपताकेन बलाकावर्णवाजिना।
हेमपृष्ठेन धनुषा नागकक्षेण केतुना।।
8-8-7a
8-8-7b
तूणीरशतपूर्णेन सगदेन वरूथिना।
शतघ्नीकिङ्किणीशक्तिशूलतोमरधारिणा।।
8-8-8a
8-8-8b
कार्मुकैरुपपन्नेन विमलादित्यवर्चसा।
रथेनाभिपताकेन सुतपुत्रो ह्यदृश्यत।।
8-8-9a
8-8-9b
ध्मापयन्वारिजं राजन्हेमजालविभूषिन्तम्।
विध्रुन्वानो महच्चापं कार्तस्वरविभूषितम्।।
8-8-10a
8-8-10b
दृष्ट्वा कर्णं महेष्वासं रथस्थं रथिनां वरम्।
भानुमन्तमिवोद्यन्तं तमो घ्नन्तं दुरासदम्।।
8-8-11a
8-8-11b
न भीष्मव्यसनं केचिन्नापि द्रोणस्य मारिष।
नान्येषां पुरुषव्याघ्र मेनिरे तत्र कौरवाः।।
8-8-12a
8-8-12b
ततस्तु त्वरयन्योधाञ्शङ्खशब्देन मारिष।
कर्णो निष्कर्षयामास कौरवाणां महद्बलम्।।
8-8-13a
8-8-13b
व्यूहं व्यूह्य महेष्वासो मकरं शत्रुतापनः।
प्रत्युद्ययौ तथा कर्णः पाण्डवान्विजिगीषया।।
8-8-14a
8-8-14b
मकरस्य तु तुण्डे वै कर्णो राजन्व्यवस्थितः।
नेत्राभ्यां शकुनिः शूर उलूकश्च महारथः।।
8-8-15a
8-8-15b
द्रोणपुत्रस्तु शिरसि ग्रीवायां सर्वसोदराः।
मध्येदुर्योधनो राजा बलेन महता वृतः।।
8-8-16a
8-8-16b
वामपादे तु राजेन्द्र कृतवर्मा व्यवस्थितः।
नारायणबलैर्युक्तो गोपालैर्युद्धदुर्मदैः।।
8-8-17a
8-8-17b
पादे तु दक्षिणे राजन्गौतमः सत्यविक्रमः।
त्रिगर्तैः सुमहेष्वासैर्दाक्षिणात्यैश्च संवृतः।।
8-8-18a
8-8-18b
अनुपादे तु यो वामस्तत्र शल्यो व्यवस्थितः।
महत्या सेनया सार्धं मद्रदेशसमुत्थया।।
8-8-19a
8-8-19b
दक्षिणे तु महाराज सुषेणः सत्यसङ्गरः।
वृतो रथमहस्रेण दन्तिनां च त्रिभिः शतैः।।
8-8-20a
8-8-20b
पुच्छे ह्यास्तां महावीर्यौ भ्रातरौ पार्थिवौ तदा।
चित्रश्च चित्रसेनश्च महत्या सेनया वृतौ।।
8-8-21a
8-8-21b
तथा प्रयाते राजेन्द्र कर्णे नरवरोत्तमे।
धनञ्जयमभिपेक्ष्य धर्मराजोऽब्रवीदिदम्।।
8-8-22a
8-8-22b
पश्य पार्थ यथा सेना धार्तराष्ट्रीह संयुगे।
कर्णेन विहिता वीर गुप्ता वीरैर्महारथैः।।
8-8-23a
8-8-23b
हतवीरतमा ह्येषा धार्तराष्ट्री महाचमूः।
फल्गुशेषा महाबाहो तृणैस्तुल्या मता मम।।
8-8-24a
8-8-24b
एको ह्यत्र महेष्वासः सूतपुत्रो विराजते।
सदेवासुरगन्धर्वैः सकिन्नरमहोरगैः।
चराचरैस्त्रिभिर्लोकैरजेयो यो महारथः।।
8-8-25a
8-8-25b
8-8-25c
तं हत्वाऽद्य महाबाहो विजयस्तव फल्गुन।
उद्धृतश्च भवेच्छल्यो मम द्वादशवार्षिकः।।
8-8-26a
8-8-26b
एवं ज्ञात्वा महाबाहो व्यूहं व्यूह यथेच्छसि।। 8-8-27a
सञ्जय उवाच। 8-8-28x
भ्रातुरेतद्वचः श्रुत्वा पाण्डवः श्वेतवाहनः।
अर्धचन्द्रेण व्यूहेन प्रत्यव्यूहत तां चमूम्।।
8-8-28a
8-8-28b
वामपार्श्वे तु तस्याथ भीमसेनो व्यवस्थितः।
दक्षिणे च महेष्वासो धृष्टद्युम्नो व्यवस्थितः।।
8-1-29a
8-8-29b
मध्ये व्यूहस्य राजा तु पाण्डवश्च धनञ्जयः।
नकुलः सहदेवश्च धर्मराजस्य पृष्ठतः।।
8-8-30a
8-8-30b
चक्ररक्षौ तु पाञ्चाल्यौ युधामन्यूत्तमौजसौ।
पार्थं न जहतुर्युद्वे पाल्यमानौ किरीटिना।।
8-8-31a
8-8-31b
शेषां नृपतयो वीराः स्थिता व्यूहस्य दंशिताः।
यथाभागं यथोत्साहं यथायत्नं च भारत।।
8-8-32a
8-8-32b
एवमेतन्महाव्यूहं व्यूह्य भारत पाण्डवाः।
तावकाश्च महेष्वासा युद्धायैव मनो दधुः।।
8-8-33a
8-8-33b
दृष्ट्वा व्यूढां तव चमूं सूतपुत्रेण संयुगे।
निहतान्पाण्डवान्मेने धार्तराष्ट्रः सबान्धवः।।
8-8-34a
8-8-34b
तथैव पाण्डवीं सेनां व्यूढां दृष्ट्वा युधिष्ठिरः।
धार्तराष्ट्रान्हतान्मेने सकर्णान्वै जनाधिपः।।
8-8-35a
8-8-35b
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
डिण्डिमाश्चाप्यहन्यन्त झर्झराश्च समन्ततः।।
8-8-36a
8-8-36b
सेनयोरुभयो राजन्प्रावाद्यन्त महास्वनाः।
सिंहनादश्च सञ्जज्ञे शूराणां जयगृद्धिनाम्।।
8-8-37a
8-8-37b
हयहेषितशब्दाश्च वारणानां च बृंहिताः।
रथनेमिस्वनाश्चोग्राः सम्बभूवुर्जनाधिप।।
8-8-38a
8-8-38b
न द्रोणव्यसनं कश्चिज्जानीते तत्र भारत।
दृष्ट्वा कर्णं महेष्वासं मुखे व्यूहस्य दंशितम्।।
8-8-39a
8-8-39b
उभे सैन्ये महाराज प्रहृष्टनरसङ्कुले।
योद्वुकामे स्थिते राजन्हन्तुमन्योन्यमोजसा।।
8-8-40a
8-8-40b
विजये जातसंरम्भे दृष्ट्वाऽन्योन्यं व्यवस्थिते।
अनीकमध्ये राजेन्द्र चेरतुः कर्णपाण्डवौ।।
8-8-41a
8-8-41b
नृत्यन्त्याविव ते सेने समेयातां परस्परम्।
तयोः पक्षप्रपक्षेभ्यो निर्ययुर्युद्वलिप्सवः।।
8-8-42a
8-8-42b
ततः प्रववृते युद्धं नरवारणवाजिनाम्।
रथानां च महाराज अन्योन्यमभिनिघ्नताम्।।
8-8-43a
8-8-43b
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि
षोडशदिवसयुद्धारम्भे अष्टमोऽध्यायः।। 8 ।।

8-8-3 नन्दितूर्यमानन्दवाद्यम्।। 8-8-5 कल्पतां सन्नह्यमाननाम्। वरूथिनां रथगुप्तिमताम्। सन्नह्यतां नराणां सन्नह्यमानानां गजादीनां च शब्दो बभूवेति द्वयोः सम्बन्धः।। 8-8-7 श्वेतेत्यादिविशेषणद्वयं रथेनेत्यस्य।। 8-8-9 अभिपताकेन वायोः प्रातिकूल्यादभिमुखपताकेन। एतत्पराजयसूचकम्।। 8-8-19 अनुपादे पादस्थानस्यापि प़श्चाद्भागे।। 8-8-20 दक्षिणे अनुपादे।। 8-8-27 व्यूह रचय।। 8-8-8 अष्टमोऽध्यायः।। Template:Footer

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