महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-034

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द्रोणेन पद्मव्यूहरचना।। 1 ।।

सञ्जय उवाच। 5-34-1x
स्थिरो भव महाराज शोकं धारय दुर्धरम्।
महान्तं बन्धुनाशं ते कथयिष्यामि तच्छृशु।।
5-34-1a
5-34-1b
पद्मव्यूहो महाराज आचार्येणाभिकल्पितः।
तत्र पद्मोपमाः सर्वे राजानो विनिवेशिताः।।
5-34-2a
5-34-2b
कुमारा राजलोकस्य निक्षिप्ताः केसरोपामाः।
कर्णिकास्थो महाराज तस्य दुर्योधनोऽभवत्।।
5-34-3a
5-34-3b
कृताभिसमयाः सर्वे सुवर्णविकृतध्वजाः।
रक्ताम्बरधराः सर्वे सर्वे रक्तविभूषणाः।।
5-34-4a
5-34-4b
सर्वे रक्तपताकाश्च सर्वे वै हेममालिनः।
चन्दनागुरुदिग्धाङ्गाः स्रग्विणः सूक्ष्मवाससः।।
5-34-5a
5-34-5b
सहिताः पर्यधावन्त कार्ष्णि प्रतियुयुत्सवः।
तेषां दशसहस्राणि बभूवुर्दृढधन्विनाम्।।
5-34-6a
5-34-6b
पौत्रं तव पुरस्कृत्य लक्ष्मणं प्रियदर्शनम्।
अन्योन्यसमदुःखास्ते अन्योन्यसमसाहसाः।।
5-34-7a
5-34-7b
अन्योन्यं स्पर्धमानाश्च अन्योन्यस्य हिते रताः।
दुर्योधनस्तु राजेन्द्र सैन्यमध्ये व्यवस्थितः।।
5-34-8a
5-34-8b
कर्णदुःशासनकृपैर्वृतो राजा महारथैः।
देवराजोपमः श्रीमाञ्श्वेतच्छत्राभिसंवृतः।।
5-34-9a
5-34-9b
चामरव्यजनाक्षेपैरुदयन्निव भास्करः।
प्रमुखे तस्य सैन्यस्य द्रोणोऽवस्थित नायकः।।
5-34-10a
5-34-10b
सिन्धुराजस्तथाऽतिष्ठच्छ्रीमान्मेरुरिवाचलः।
सिन्धुराजस्य पार्श्वस्था अश्वत्थामपुरोगमाः।।
5-34-11a
5-34-11b
सुतास्तव महाराज त्रिंशत्त्रिदशसन्निभाः।
गान्धारराजः कितवः शल्यो भूरिश्रवास्तथा।।
5-34-12a
5-34-12b
पार्श्वतः सिन्धुराजस्य व्यराजन्त महारथाः।
ततः प्रववृते युद्धं तुमुलं लोमहर्षणम्।
तावकानां परेषां च मृत्युं कृत्वा निवर्तनम्।।
5-34-13a
5-34-13b
5-34-13c
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि
त्रयोदशदिवसयुद्धे चतुस्त्रिंशोऽध्यायः।। 34 ।।

5-34-2 चक्रव्यूह इति झ.पाठः।। 5-34-10 प्रमुखेऽग्रे। सैन्यस्य नायको द्रोणः। अवस्थितेतिच्छन्दोनुरोधाद्विसर्गलोपः।। 5-34-34 चतुस्त्रिंशोऽध्यायः।। Template:Footer

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