महाभारतम्-02-सभापर्व-037

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Template:महाभारतम्/सभापर्व

आमन्त्रितानां सर्वेषां आगमनम्।। 1।।

वैशम्पायन उवाच।। 2-37-1x
तत आमन्त्रिता राजन्राजानः सत्कृतास्तदा।
पुरेभ्यः प्रययुस्तेभ्यो विमानेभ्य इवामराः।।
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ते वै दिग्भ्यः समापेतुः पार्थिवास्तत्र भारत।
समादाय महार्हाणि रत्नानि विविधानि च।।
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तच्छ्रुत्वा धर्मराजस्य यज्ञे यज्ञविदस्तदा।
राजानः शतशस्तुष्टैर्मनोभिर्मनुर्षभ।।
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बहु वित्तं समादाय विविधं पार्थिवा ययुः।
द्रष्टुकामाः सभां चैव धर्मराजं च पाण्डवम्।।
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स गत्वा हास्तिनपुरं नकुलः समितिञ्जयः।
भीष्ममामन्त्रयाञ्चक्रे धृतराष्ट्रं च पाण्डवः।।
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2-37-5b
प्रयतः प्राञ्जलिर्भूत्वा भारतानानयत्तदा।
धृतराष्ट्रं च भीष्मं च विदुरं च महामतिम्।।
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2-37-6b
दुर्योधनमुखांश्चैव भ्रातॄन्सर्वानथानयत्।। 2-37-7a
सत्कृत्यामन्त्रिताः सर्वे ह्याचार्यप्रमुखास्ततः।
प्रययुः प्रीतमनसो यज्ञं ब्रह्मपुरस्सराः।।
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धृतराष्ट्रश्च भीष्मश्च विदुरस्च महामतिः।
दुर्योधनपुरोगाश्च भ्रातरः सर्व एव ते।
गान्धारराजः सुबलः शकुनिश्च महाबलः।।
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अचलो वृषकश्चैव कर्णश्च रथिनां वरः।
तथा शल्यश्च बलवान्बाह्लिकश्च महाबलः।।
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सोमदत्तोऽथ कौरव्यो भूरिर्भूरिश्रवाः शलः।
अश्वत्थामा कृपो द्रोणः सैन्धवश्च जयद्रथः।।
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यज्ञसेनः सपुत्रश्च साल्वश्च वसुधाधिपः।
प्राग्ज्योतिषश्च नृपतिर्भगदत्तो महारथः।।
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2-37-12b
स तु सर्वैः सह म्लेच्छैः सागरानूपवासिभिः।
पार्वतीयाश्च राजानो राजा चैव बृहद्बलः।।
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पौण्ड्रको वासुदेवश्च वङ्गः कालिङ्गकस्तथा।
आकर्षाः कुन्तलाश्चैव गालवाश्चान्ध्रकास्तथा।।
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2-37-14b
द्राविडाः सिंहलाश्चैव राजा काश्मीरकस्तथा।
कुन्तिभोजो महातेजाः पार्थिवो गौरवाहनः।।
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बाह्लिकाश्चापरे शूरा राजानः सर्व एव ते।
विराटः सह पुत्राभ्यां मावेल्लश्च महाबलः।।
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राजानो राजपुत्राश्च नानाजनपदेश्वराः।
शिशुपालो महावीर्यः सह पुत्रेण भारत।।
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आगच्छत्पाण्डवेयस्य यज्ञं समरदुर्मदः।
रामश्चैवानिरुद्धश्च कङ्कश्च सहसारणः।।
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गदप्रद्युम्नसाम्बाश्च चारुदेष्णश्च वीर्यवान्।
उल्मुको निशठश्चैव वीरश्चाङ्गावहस्तथा।।
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वृष्णयो निखिलाश्चान्ये समाजग्मुर्महारथाः।
एते चान्ये च बहवो राजानो मध्यदेशजाः।।
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आजग्मुः पाण्डुपुत्रस्य राजसूयं महाक्रतुम्।
ददुस्तेषामावसथान्धर्मराजस्य शासनात्।।
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2-37-21b
बहुभक्ष्यान्वितान्राजन्दीर्घिकावृक्षशोभितान्।
तथा धर्मात्मजः पूजां चक्रे तेषां महात्मनाम्।।
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सत्कृताश्च यथोद्दिष्टाञ्जग्मुरावसथान्नृपाः।
कैलासशिखरप्रख्यान्मनोज्ञान्द्रव्यभूषितान्।।
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सर्वतः संवृतानुच्चैः प्राकारैः सुकृतैः सितैः।
सुवर्णजालसंवीतान्मणिकुट्टिमभूषितान्।।
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सुखारोहणसोपानान्महासनपरिच्छदान्।
स्नग्दामसमवच्छन्नानुत्तमागुरुगन्धिनः।।
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2-37-25b
हंसेन्दुवर्णसदृशानायोजनसुदर्शनान्।
असम्बाधान्समद्वारान्युतानुच्चावचैर्गुणैः।।
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बहुधातुनिबद्धाङ्गान्हिमवच्छिखरानिव।
विश्रान्तास्ते ततोऽपश्यन्भूमिपा भूरिदक्षिणम्।।
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वृतं सदस्यैर्बहुभिर्धर्मराजं युधिष्ठिरम्।
तत्सदः पार्थिवैः कीर्णं ब्राह्मणैश्च महर्षिभिः।
भ्राजते स्म तदा राजन्नाकपृष्ठं यथाऽमरैः।।
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2-37-28c
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि
दिग्विजयपर्वणि सप्तत्रिंशोऽध्यायः।। 37।।

टिप्पणी

2-37-8 ब्रह्मपुरस्सराः ब्राह्मणपुरस्सराः।। Template:Footer

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