ऋग्वेदः सूक्तं ५.२४
Jump to navigation
Jump to search
अग्ने त्वं नो अन्तम उत त्राता शिवो भवा वरूथ्यः ॥१॥
वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमं रयिं दाः ॥२॥
स नो बोधि श्रुधी हवमुरुष्या णो अघायतः समस्मात् ॥३॥
तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः ॥४॥