महाभारतम्-10-सौप्तिकपर्व-015
Jump to navigation
Jump to search
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
Template:महाभारतम्/सौप्तिकपर्व
अर्जुनेन व्यासनारदभावानुरोधेन स्वप्रयुक्तब्रह्मशिरोस्त्रप्रतिसंहारः।। 1 ।। कृष्णेनाश्वत्थामानं प्रति उत्तरागर्भे ऐषीकास्त्रपातेऽपि मृतशिशोः स्वेन समुज्जीवनप्रतिज्ञा।। 2 ।। ब्रह्मचर्याभावादस्रप्रतिसंहारासमर्थेन द्रौणिना व्यासकृष्णावनादृस्य पाण्वगर्भेष्वैषीकास्त्रोत्सर्जनम्।। 3 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 10-15-1x |
दृष्टैव मुनिशार्दूलौ तावग्निसमतेजसौ। `गाण्डीवधन्वा सञ्चिन्त्य प्राप्तकालं महारथः।' सञ्जहार शरं दिव्यं त्वरमाणो धनञ्जयः।। | 10-15-1a 10-15-1b 10-15-1c |
उवाच वचनं श्रेष्ठस्तावृषी प्राञ्जलिस्तदा। प्रमुक्तमस्त्रमस्त्रेण शाम्यतामिति वै मया।। | 10-15-2a 10-15-2b |
संहृते परमास्त्रेऽस्मिन्सर्वानस्मानशेषतः। पापकर्मा ध्रुवं द्रौणिः प्रधक्ष्यत्यस्त्रतेजसा।। | 10-15-3a 10-15-3b |
यदत्र हितमस्माकं लोकानां चैव सर्वथा। भवन्तौ देवसङ्काशौ तथा सम्मन्तुमर्हतः।। | 10-15-4a 10-15-4b |
इत्युक्त्वा सञ्जहारास्त्रं पुनरेव धनञ्जयः। संहारो दुष्करस्स्य देवैरपि हि संयुगे।। | 10-15-5a 10-15-5b |
विसृष्टस्य रणे तस्य परमास्त्रस्य सङ्ग्रहे। अशक्तः पाण्डवादन्यः साक्षादपि शतक्रतुः।। | 10-15-6a 10-15-6b |
ब्रह्मतेजोद्भवं तद्धि विसृष्टमकृतात्मना। न शक्यमावर्तयितुं ब्रह्मचर्यव्रतादृते।। | 10-15-7a 10-15-7b |
अचीर्णब्रह्मचर्यो यः सृष्ट्वाऽऽवर्यते पुनः। तदस्त्रं सानुबन्धस्य मूर्धानं तस्य कृन्तति।। | 10-15-8a 10-15-8b |
ब्रह्मचारी व्रती चापि दुरवापमवाप्य तत्। परमव्यसनार्तोऽपि नार्जुनोऽस्त्रं व्यमुञ्चत।। | 10-15-9a 10-15-9b |
सत्यव्रतधरः शूरो ब्रह्मचारी च पाण्डवः। गुरुवर्ती च तेनास्त्रं सञ्जहारार्जुनः पुनः।। | 10-15-10a 10-15-10b |
द्रौणिरप्यथ सम्प्रेभ्य सोऽन्तरा तावृषी स्थितौ। न शशाक पुनर्घोरमस्त्रं संहर्तुमोजसा।। | 10-15-11a 10-15-11b |
अशक्तः प्रतिसंहारे परमास्त्रस्य संयुगे। द्रौणिर्दीनमना राजन्द्वैपायनमभाषत।। | 10-15-12a 10-15-12b |
उत्तमव्यसनार्तेन प्राणत्राणमभीप्सुना। मयैतदस्त्रमुत्सृष्टं भीमसेनभयान्मुने।। | 10-15-13a 10-15-13b |
अधर्मश्च कृतोऽनेन धार्तराष्ट्रं जिघांसता। मिथ्याचारेण भगवन्भीमसेनेन संयुगे।। | 10-15-14a 10-15-14b |
अतः सृष्टमिदं ब्रह्मन्मयाऽस्त्रमकृतात्मना। तस्य भूयोऽपि संहारं कर्तुं नाहमिहोत्सहे।। | 10-15-15a 10-15-15b |
निसृष्टं हि मया दिव्यमेतदस्त्रं दुरासदम्। अपाण्डवायेति मुने वह्नितेजोऽनुमन्त्र्य वै।। | 10-15-16a 10-15-16b |
तदिदं पाण्डवेयानामन्तायैवाभिसंहितम्। अद्य पाण्डुसुतान्सर्वाञ्जीविताद्वंशयिष्यति।। | 10-15-17a 10-15-17b |
कृतं पापमिदं ब्रह्मन्रोषाविष्टेन चेतसा। वधमाशास्य पार्थानां मयास्त्रं सृजता रणे।। | 10-15-18a 10-15-18b |
व्यास उवाच। | 10-15-19a |
अस्त्रं ब्रह्मशिरस्तात विद्वान्पार्थो धनञ्जयः। उत्सृष्टवानहिंसार्थं न रोषेण तवाहवे।। | 10-15-19a 10-15-19b |
अस्त्रमस्त्रेण तु रमे तव संशमयिष्यता। विसृष्टमर्जुनेनेदं पुनश्च प्रतिसंहृतम्।। | 10-15-20a 10-15-20b |
ब्रह्मास्त्रमप्यवाप्यैतदुपदेशात्पितुस्तव। क्षत्रधर्मान्महाबाहुर्नाकम्पत धनञ्जयः।। | 10-15-21a 10-15-21b |
एवं धृतिमतः साधोः सर्वास्त्रविदुषः सतः। सभ्रातृबन्धोः कस्मात्त्वं वधमस्य चिकीर्षसि।। | 10-15-22a 10-15-22b |
अस्त्रं ब्रह्मशिरो यत्र परमास्त्रेण वध्यते। समा द्वादश पर्जन्यस्तद्राष्ट्रं नाभिवर्षति।। | 10-15-23a 10-15-23b |
एतदर्थं महाबाहुः शक्तिमानपि पाण्डवः। न विहन्यात्तदस्त्रं तु प्रजाहितचिकीर्षया।। | 10-15-24a 10-15-24b |
पाण्डवास्त्वं च राष्ट्रं च सदा संरक्ष्यमेव नः। तस्मात्संहर दिव्यं त्वमस्त्रमेन्महाभुज।। | 10-15-25a 10-15-25b |
अरोषस्तव चैवास्तु पार्थाः सन्तु निरामयाः। न ह्यधर्मेण राजर्षिः पाण्डवो जेतुमिच्छति। | 10-15-26a 10-15-26b |
मणिं चैव प्रयच्छाद्य यस्ते शिरसि तिष्ठति। एतदादाय ते प्रामान्प्रतिदास्यन्ति पाण्डवाः।। | 10-15-27a 10-15-27b |
द्रौणिरुवाच। | 10-15-28x |
पाण्डवैर्यानि रत्नानि यच्चान्यत्कौरवैर्धनम्। अवाप्तमिह तेभ्योऽयं मणिर्मम विशिष्यते।। | 10-15-28a 10-15-28b |
यमाबध्य भयं नास्ति शस्त्रव्याधिक्षुधाश्रयम्। देवेभ्यो दानवेभ्यो वा नागेभ्यो वा कथञ्चन।। | 10-15-29a 10-15-29b |
न च रक्षोगणभयं न तस्करभयं तथा। एवंवीर्यो मणिरयं न मे त्याज्यः कथञ्चन।। | 10-15-30a 10-15-30b |
यत्तु मे भगवानाह तन्मे कार्यमनन्तरम्। अयं मणिरयं चाहमिषीका तु पतिष्यति। गर्भेषु पाण्डुपुत्राणामुत्रायास्तथोदरे।। | 10-15-31a 10-15-31b 10-15-31c |
वैशम्पायन उवाच। | 10-15-32x |
प्राह द्रोणसुतं तत्र व्यासः परमदुर्मनाः।। | 10-15-32a |
एवं कुरु न चान्यत्र बुद्धिः कार्या कथञ्चन। गर्भेषु पाण्डवेयानां विसृज्यैतदुपारम।। | 10-15-33a 10-15-33b |
`तमुवाच हृषीकेशः पाण्डवानां हिते मतः। भविष्यमेकमुत्सृज्य गर्भेष्वस्त्रं निपात्यताम्।। | 10-15-34a 10-15-34b |
अहमेनं ददाम्येषां पिण्डदं कीर्तिवर्धनम्। राजर्षिं पुण्यकर्माणमनेकक्रतुयाजिनम्।। | 10-15-35a 10-15-35b |
एवं कुरु न चान्या ते बुद्धिः कार्या कथञ्चन। आगर्भात्पाण्डवेयानां कृत्वा पातं विनङ्क्ष्यति'।। | 10-15-36a 10-15-36b |
एवं ब्रुवाणं गोविन्दं वृषभं सर्वसात्वताम्। द्रौणिः परमसङ्क्रुद्धः प्रत्युवाचेदमुत्तरम्।। | 10-15-37a 10-15-37b |
नैतदेवं यदात्थ त्वं पक्षपातेन केशव। वचनात्पुण्डरीकाक्ष तव मद्वाक्यमन्यथा।। | 10-15-38a 10-15-38b |
पतिष्यत्येतदस्त्रं वै गर्भे तस्या मयोद्यतम्। विराटदुहितुः कृष्ण यं त्वं रक्षितुमर्हसि।। | 10-15-39a 10-15-39b |
वासुदेव उवाच। | 10-15-40x |
अमोघः परमास्त्रस्य पातस्त्वद्य भविष्यति। `अभिमन्योः सृजैषीकां गर्भस्थः शाम्यतां शिशुः।। | 10-15-40a 10-15-40b |
अहमेनं मृतं जातं जीवयिष्यामि बालकम्'। स तु गर्भो मृतो जातो दीर्घमायुरवाप्स्यति।। | 10-15-41a 10-15-41b |
`इत्युक्तः प्रत्युवाचैनं द्रोणपुत्रः स्मयन्निव। यद्यस्त्रदग्धं गोविन्द जीवयस्येवमस्त्विति'।। | 10-15-42a 10-15-42b |
ततः परममस्त्रं तु द्रौणिरुद्यतमाहवे। द्वैपायनमनादृत्य गर्भेषु प्रमुमोच ह।। | 10-15-43a 10-15-43b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सौप्तिकपर्वणि ऐषीकपर्वणि पञ्चदशोऽध्यायः।। 15 ।। |
10-15-8 आवर्तयते उपसंहरति।। 10-15-27 एवं जीवितमादाय तव यास्यन्ति पाण्डवाः। इति क.पाठः।। 10-15-29 मम वध्यमयं नास्तीति क.पाठः।। 10-15-15 पञ्चदशोऽध्यायः।। Template:Footer