महाभारतम्-09-शल्यपर्व-039
Jump to navigation
Jump to search
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
सरस्वत्याः सप्तधाविभागे कारणाभिधानम्।। 1 ।।
सप्तभागानां कस्मिंश्चित्तीर्थे एकीभवनात्तत्तीर्थस्य सप्तसारस्वतनामप्राप्तिः।। 2 ।।
मङ्कणमुनिचरितप्रतिपादनम्।। 3 ।।
जनमेजय उवाच। | 9-39-1x |
सप्तसारस्वतं कस्मात्कश्च मङ्कणको मुनिः। कथं सिद्धः स भगवान्कश्चास्य नियमोऽभवत्।। | 9-39-1a 9-39-1b |
कस्य वंशे समुत्पन्नः किं चाधीतं द्विजोत्तम। एतन्मे सर्वमाचक्ष्व यथातत्त्वं महामुने।। | 9-39-2a 9-39-2b |
वैशम्पायन उवाच। | 9-39-3x |
सप्तनद्यः सरस्वत्या याभिर्व्याप्तमिदं जगत्। आहूता बलवद्भिर्हि तत्रतत्र सरस्वती।। | 9-39-3a 9-39-3b |
सुप्रभा काञ्चनाक्षी च विशाला च मनोरमा। सरस्वती चौघवती सुरेणुर्विमलोदका।। | 9-39-4a 9-39-4b |
पितामहस्य महतो वर्तमाने महामखे। वितते यज्ञवाटे च संसिद्धेषु द्विजातिषु।। | 9-39-5a 9-39-5b |
पुण्याहघोषैर्विमलैर्वेदानां निनदैस्तथा। देवेषु चैव व्यग्रेषु तस्मिन्यज्ञविधौ तदा।। | 9-39-6a 9-39-6b |
तत्र चैव महाराज दीक्षिते प्रपितामहे। यजतस्तस्य सत्रेण सर्वकामसमृद्विना।। | 9-39-7a 9-39-7b |
मनसा चिन्तिता ह्यर्था धर्मार्थकुशलैस्तदा। उपतिष्ठन्ति राजेन्द्र द्विजातींस्तत्रतत्र ह।। | 9-39-8a 9-39-8b |
जगुश्च तत्र गन्धर्वा ननृतुश्चाप्सरोगणाः। वादित्राणि च दिव्यानि वादयामासुरञ्जसा।। | 9-39-9a 9-39-9b |
तस्य यज्ञस्य सम्पत्त्या तुतुषुर्देवतागणाः। विस्मयं परमं जग्मुः किमु मानुषयोनयः।। | 9-39-10a 9-39-10b |
वर्तमाने यथा यज्ञे पुष्करस्थे पितामहे। अब्रुवन्नृषयो राजन्नायं यज्ञो महागुणः।। | 9-39-11a 9-39-11b |
न दृश्यते सरिच्छ्रेष्ठा यस्मादिह सरस्वती। तच्छ्रुत्वा भगवान्प्रीतः सस्माराथ सरस्वतीम्।। | 9-39-12a 9-39-12b |
पितामहेन यजता आहूता पुष्करेषु वै। सुप्रभा नाम राजेन्द्र नाम्ना तत्र सरस्वती।। | 9-39-13a 9-39-13b |
तां दृष्ट्वा मुनयस्तुष्टास्त्वरायुक्तां सरस्वतीम्। पितामहं मानयन्तीं क्रतुं ते बहुमेनिरे।। | 9-39-14a 9-39-14b |
एवमेषा सरिच्छ्रेष्ठा पुष्करेषु सरस्वती। पितामहार्थं सम्भूता तुष्ट्यर्थं च मनीषिणाम्।। | 9-39-15a 9-39-15b |
नैमिषे मुनयो राजन्समागम्य समासते। तत्र चित्राः कथा ह्यासन्वेदं प्रति जनेश्वर।। | 9-39-16a 9-39-16b |
यत्र ते मुनयो ह्यासन्नानास्वाध्यायवेदिनः। ते समागम्य मुनयः सस्मारुर्वै सरस्वतीम्।। | 9-39-17a 9-39-17b |
सा तु ध्याता महाराज मुनिभिः सत्रयाजिभिः। समागतानां राजेन्द्र साहाय्यार्थं महात्मनाम्। आजगाम महाभागा तत्र पुण्या सरस्वती।। | 9-39-18a 9-39-18b 9-39-18c |
नैमिषे काञ्चनाक्षी तु मुनीनां सत्रायाजिxxxम्। आगता सरितां श्रेष्ठा तत्र भारत पूजित।। | 9-39-19a 9-39-19b |
गयस्य यजमानस्य गयेष्वेव महाक्रतुम्। आहूता सरितां श्रेष्ठा गययज्ञे सरस्वती।। | 9-39-20a 9-39-20b |
गयस्य यजमानस्य गयेष्वेव महाक्रतुम्। विशालां तु गयस्याहुर्ऋषयः संशितव्रता।। | 9-39-21a 9-39-21b |
सरित्सा हिमवत्पार्श्वात्प्रस्रुता शीघ्रगामिनी। औद्दालकेस्तथा यज्ञे यजतस्तस्य भारत।। | 9-39-22a 9-39-22b |
समेते सर्वतः स्फीते मुनीनां मण्डले तदा। उत्तरे कोसलाभागे पुण्ये राजन्महात्मनः।। | 9-39-23a 9-39-23b |
औद्दालकेन यजता पूर्वं ध्याता सरस्वती। आजगाम सरिच्छेष्ठा तं देशं मुनिकारणात्।। | 9-39-24a 9-39-24b |
पूज्यमाना मुनिगणैर्वल्कलाजिनसंवृतैः। मनोहरेति विख्याता सा हि तैर्मनसा वृता।। | 9-39-25a 9-39-25b |
[सुरणुऋषभे द्वीपे पुण्ये राजर्षिसेविते।] कुरोश्च यजमानस्य कुरुक्षेत्रे महात्मनः। आजगाम महाभागा सरिच्छ्रेष्ठा सरस्वती।। | 9-39-26a 9-39-26b 9-39-26c |
ओघवत्यपि राजेन्द्र वसिष्ठेन महात्मना। समाहूता कुरुक्षेत्रे दिव्यतोया सरस्वती।। | 9-39-27a 9-39-27b |
दक्षेण यजता चापि गङ्गाद्वारे सरस्वती। सुवेणिरिति विख्याता प्रस्रुता शीघ्रगामिनी।। | 9-39-28a 9-39-28b |
विमलोदा भगवती ब्रह्मणा यजता पुनः। समाहूता ययौ तत्र पुण्ये हैमवते गिरौ।। | 9-39-29a 9-39-29b |
एकीभूतास्ततस्तास्तु तस्मिंस्तीर्थे समागताः। सप्तसारस्वतं तीर्थं ततस्तु प्रथितं भुवि।। | 9-39-30a 9-39-30b |
इति सप्तसरस्वत्यो नामतः परिकीर्तिताः। सप्तसारस्वतं चैव तीर्थं पुण्यं तथा स्मृतम्।। | 9-39-31a 9-39-31b |
शृणु मङ्कणकस्यापि कौमारब्रह्मचारिणः। आपगामवगाढस्य राजन्प्रक्रीडितं महत्।। | 9-39-32a 9-39-32b |
दृष्ट्वा यदृच्छया तत्र स्त्रियमम्भसि भारत। स्नायन्तीं रुचिरापाङ्गीं दिग्वाससमनिन्दिताम्। | 9-39-33a 9-39-33b |
सरस्वत्यां महाराज चस्कन्दे वीर्यमम्भसि।। तद्रेतः स तु जग्राह कलशे वै महातपाः। | 9-39-34a 9-39-34b |
`ऋषिः परमधर्मात्मा तदा पुरुषसत्तम'।। सप्तधा प्रविभागं तु कलशस्थं जगाम ह। | 9-39-35a 9-39-35b |
तत्रर्षयः सप्त जाता जज्ञिरे मरुतां गणाः।। वायुवेगो वायुबलो वायुहा वायुमण्डलः। | 9-39-36a 9-39-36b |
वायुज्वालो वायुरेता वायुचक्रश्च वीर्यवान्। 0 महर्षेश्चरितं यादृक् त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्।। | 9-39-37a 9-39-37b 9-39-37c |
पुरा मङ्कणकः सिद्भः कुशाग्रेणेति नः श्रुतम्। क्षतः किल करे राजंस्तस्य शाकरसोऽस्रवत्।। | 9-39-38a 9-39-38b |
स वै शाकरसं दृष्ट्वा हर्षाविष्टः प्रनृत्तवान्।। | 9-39-39a |
ततस्तस्मिन्प्रनृत्ते वै स्थावरं जङ्गमं च यत्। प्रनृत्तमुभयं वीर सेजसा तस्य मोहितम्।। | 9-39-40a 9-39-40b |
ब्रह्मादिभिः सुरै राजन्नृषिभिश्च तपोधनैः। विज्ञप्तो वै महादेव ऋषेरर्थे नराधिप। नायं नृत्येद्यथा देव तथा त्वं कर्तुमर्हसि।। | 9-39-41a 9-39-41b 9-39-41c |
ततो देवो मुनिं दृष्ट्वा हर्षाविष्टमतीव ह। सुगणां हितकामार्थं महादेवोऽभ्यभाषत।। | 9-39-42a 9-39-42b |
भोभो ब्राह्मण धर्मज्ञ किमर्थं नृत्यते भवान्। हर्षस्थानं किमर्थं च तवेदमधिकं मुने। तपस्विनो धर्मपथे स्थितस्य द्विजसत्तम।। | 9-39-43a 9-39-43b 9-39-43c |
ऋषिरुवाच। | 9-39-44x |
किं न पश्यसि मे ब्रह्मन्कराच्छाकरसं स्रुतम्। यं दृष्ट्वा सम्प्रनृत्तो वै हर्षेण महता विभो।। | 9-39-44a 9-39-44b |
तं प्रहस्याब्रवीद्देवो मुनिं रागेण मोहितम्। अहं न विस्मयं विप्र गच्छामीति प्रपश्य माम्।। | 9-39-45a 9-39-45b |
एवमुक्त्वा मुनिश्रेष्ठं महादेवेन धीमता। अङ्गुल्यग्रेण राजेन्द्रस्वाङ्गुष्ठस्ताडितोऽभवत्।। | 9-39-46a 9-39-46b |
ततो भस्म क्षताद्राजन्निर्गतं हिमसन्निभम्।। | 9-39-47a |
तद्दृष्ट्वा व्रीडितो राजन्स मुनिः पादयोर्गतः। मेने देवं महादेवमिदं चोवाच विस्मितः।। | 9-39-48a 9-39-48b |
नान्यं देवादहं मन्ये रुद्रात्परतरं महत्। सुरासुरस्य जगतो गतिस्त्वमसि शूलधृक्।। | 9-39-49a 9-39-49b |
त्वया सृष्टमिदं विश्वं वदन्तीह मनीषिणः। त्वामेव सर्वं विशति पुनरेव युगक्षये।। | 9-39-50a 9-39-50b |
देवैरपि न शक्यस्त्वं परिज्ञातुं कुतो मया। त्वयि सर्वे स्म दृश्यन्ते भावा ये जगति स्थिताः।। | 9-39-51a 9-39-51b |
त्वामुपासन्त वरदं देवा ब्रह्मादयोऽनघ। सर्वस्त्वमसि देवानां कर्ता कारयिता च ह।। | 9-39-52a 9-39-52b |
त्वत्प्रसादात्सुराः सर्वे मोदन्तीहाकुतोभयाः। `त्वं प्रभुः परमैश्वर्यादधिकं भासि शङ्करः।। | 9-39-53a 9-39-53b |
त्वयि ब्रह्मा च विष्णुश्च लोकान्सन्धाय तिष्ठतः। त्वन्मूलं च जगत्सर्वं भूतस्थावरजङ्गमम्।। | 9-39-54a 9-39-54b |
स्वर्गं च परमं स्थानं नृणामभ्युदयार्थिनाम्। ददासि च प्रसन्नस्त्वं भक्तानां परमेश्वर।। | 9-39-55a 9-39-55b |
अनावृत्तिपदं नॄणां नित्यं निश्रेयसार्थिनाम्। ददासि कर्मिणां कर्म भावयन्ध्यानयोगतः।। | 9-39-56a 9-39-56b |
न वृथाऽस्ति महादेव प्रसादस्ते महेश्वर। यस्मात्त्वयोपकरणात्करोमि कमलेक्षण।। | 9-39-57a 9-39-57b |
प्रपद्ये शरणं शंभुं सर्वदा सर्वतः स्थितम्। कर्मणा मनसा वाचा तमेवाभिभजाम्यहम्।। | 9-39-58a 9-39-58b |
जनमेजय उवाच।' | 9-39-59x |
एवं स्तुत्वा महादेवं स ऋषिः प्रणतोऽभवत्।। | 9-39-59a |
यदिदं चापलं देव कृतमेतत्स्मयादिकम्। ततः प्रसादयमि त्वां तपो मे न क्षरेदिति।। | 9-39-60a 9-39-60b |
ततो देवः प्रीतमनास्तमृषिं पुनरब्रवीत्। तपस्ते वर्धतां विप्र मत्प्रसादात्सहस्रधा।। | 9-39-61a 9-39-61b |
आश्रमे चेह वत्स्यामि त्वया सार्धमहं सदा। सप्तसारस्वते चास्मिन्यो मामर्चिष्यते नरः।। | 9-39-62a 9-39-62b |
न तस्य दुर्लभं किञ्चिद्धवितेह परत्र वा। सारस्वतं च ते लोकं गमिष्यन्ति न संशयः।। | 9-39-63a 9-39-63b |
एतन्मङ्कणकस्यापि चरितं भूरितेजसः। स हि पुत्रः सुकन्यायामुत्पन्नो मातरिश्वना।। | 9-39-64a 9-39-64b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि ह्रदप्रवेशपर्वणि एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः।। 39 ।। |
9-39-4 विशाला सुतनुस्तथा। सरस्वत्योघमाला च सुवेणी निर्मलोदका इति ङ.पाठः। सरस्वत्यूर्मिमाला च सुवेणी विमलोदका इति क.पाठः।। 9-39-17 सस्मरुः स्मृतवन्तः।। 9-39-20 गयेषु गयदेशेषु।। 9-39-25 मनोरमेति विख्याता सा हि तैर्मनसा कृता इति झ.पाठः।। 9-39-28 सुरेणुरिति झ.पाठः।। 9-39-32 राजन्प्रजपितं महत् इति क.पाठः।। 9-39-33 स्नायन्तीं स्नान्तीम्।। 9-39-36 मरुतां प्राणवायूनां एकोनपञ्चाशताम्। एतेषां तपसा मरुतो दित्यामुत्पन्ना इति कल्पान्तरविषयोऽयमर्थः।। 9-39-60 स्मयादिकं गर्दादिकम्।। 9-39-39 एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः।। Template:Footer