महाभारतम्-09-शल्यपर्व-034
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xxxxxxxxxx।। 1 ।।
तस्मिन्पाण्ढवादिभिरर्चितोपविष्टे पुनर्गदायुद्धारम्भः।। 2 ।।
सञ्जय उवाच। | 9-34-1x |
xxxxxxxxxxxसुसंवृत्ते सुदारुणे। xxxxxxxxxxx पाण्डवेषु महात्मसु।। | 9-34-1a 9-34-1b |
ततस्तालध्वजके रामस्तयोर्युद्ध उपस्थिते। श्रुत्वा तच्छिष्ययो राजन्नाजगाम हलायुधः।। | 9-34-2a 9-34-2b |
तं दृष्ट्वा परमप्रीताः पाण्डवाः सहकेशवाः। उपगम्योपसङ्गृह्य विधिवत्प्रत्यपूजयन्।। | 9-34-3a 9-34-3b |
पूजयित्वा ततः पश्चादिदं वचनमब्रुवन्। शिष्ययोः कौशलं युद्धे पश्य रामेति पार्थिव।। | 9-34-4a 9-34-4b |
अब्रवीच्च तदा रामो दृष्ट्वा कृष्णं सपाण्डवम्। दुर्योधनं च कौरव्यं गदापाणिमवस्थितम्।। | 9-34-5a 9-34-5b |
राम उवाच। | 9-34-6x |
चत्वारिंशदहान्यद्य द्वे च मे निःसृतस्य वै। पुष्येण सम्प्रयातोऽस्मि श्रवणे पुनरागतः। शिष्ययोर्वै गदायुद्धं द्रुष्टुकामोऽस्मि माधव।। | 9-34-6a 9-34-6b 9-34-6c |
ततो युधिष्ठिरो राजा परिष्वज्य हलायुधम्। स्वागतं कुशलं चास्मै पर्यपृच्छद्यथातथम्।। | 9-34-7a 9-34-7b |
कृष्णौ चापि महेष्वासावभिवाद्य हलायुधम्। सस्वजाते परिप्रीतौ प्रीयमाणौ यशस्विनौ।। | 9-34-8a 9-34-8b |
माद्रीपुत्रौ तथा शूरौ द्रौपद्याः पञ्च चात्मजाः। अभिवाद्य स्थिता राजन्रौहिणेयं महाबलम्।। | 9-34-9a 9-34-9b |
भीमसेनोऽथ बलवान्पुत्रस्तव जनाधिप। तथैव चोद्यतगदौ पूजयामासतुर्बलम्।। | 9-34-10a 9-34-10b |
स्वागतेन च ते तत्र प्रतिपूज्य पुनःपुनः। पश्य युद्धं महाबाहो इति ते राममब्रुवन्।। | 9-34-11a 9-34-11b |
एवमुचुर्महात्मानं रौहिणेयं नराधिपाः।। | 9-34-12a |
परिष्वज्य तदा रामः पाण्डवान्सह सृञ्जयान्। अपृच्छत्कुशलं सर्वान्पार्थिवांश्चामितौजसः। तथैव ते समासाद्य पप्रच्छुस्तमनामयम्।। | 9-34-13a 9-34-13b 9-34-13c |
प्रत्यभ्यर्च्य हली सर्वान्क्षत्रियांश्च महात्मनः। कृत्वा कुशलसम्प्रश्नं संविदं च यथावयः।। | 9-34-14a 9-34-14b |
जनार्दनं सात्यकिं च प्रेम्णा सम्परिषस्वजे। मूर्ध्नि चैतावुपाघ्राय कुशलं पर्यपृच्छत।। | 9-34-15a 9-34-15b |
तौ च तं विधिवद्राजन्पूजयामासतुर्गुरुम्। ब्रह्माणामिव देवेशमिन्द्रोपेन्द्रौ मुदान्वितौ।। | 9-34-16a 9-34-16b |
ततोऽब्रवीद्धर्मसुतो रौहिणेयमरिन्दमम्। इदं भ्रात्रोर्महायुद्धं पश्य रामेति भारत।। | 9-34-17a 9-34-17b |
तेषां मध्ये महाबाहुः श्रीमान्केशवपूर्वजः। न्यविशत्परमप्रीतः पूज्यमानो महारथैः।। | 9-34-18a 9-34-18b |
स बभौ राजमध्यस्थो नीलवासाः सितप्रभः। दिवीव नक्षत्रगणैः परिवीतो निशाकरः।। | 9-34-19a 9-34-19b |
ततस्तयोः सन्निपातस्तुमुलो रोमहर्षणः। आसीदन्तकरो राजन्वैरस्यान्तं विधित्सतोः।। | 9-34-20a 9-34-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि ह्रदप्रवशपर्वणि अष्टादशदिवसयुद्धे चतुस्त्रिंशोऽध्यायः।। 34 ।। |