महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-023
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-23-1x |
सर्वेषामेव मे ब्रूहि रथचिह्वानि सञ्जय। ये द्रोणमभ्यवर्तन्त क्रुद्धा भीमपुरोगमाः। `तान्यहं श्रोतुमिच्छामि विस्तरेण पृथक्पृथक्।। | 5-23-1a 5-23-1b 5-23-1c |
दूयते मे मनस्तात द्रोणं प्रति परन्तपम्। श्रुत्वा भीष्मस्य निधनं तद्वदेतद्भविष्यति'।। | 5-23-2a 5-23-2b |
सञ्जय उवाच। | 5-23-3x |
ऋक्षवर्णैर्हयैर्दृष्ट्वा व्यायच्छन्तं वृकोदरम्। रजताश्वस्ततः शूरः शैनेयः सन्न्यवर्तत।। | 5-23-3a 5-23-3b |
सारङ्गाश्वो युधामन्युः स्वयं प्रत्वरयन्हयान्। पर्यवर्तत दुर्धर्षः क्रुद्धो द्रोणरथं प्रति।। | 5-23-4a 5-23-4b |
पारावतसवर्णैस्तु हेमभाण्डैर्महाजवैः। पाञ्चालराजस्य सुतो धृष्टद्युम्नो न्यवर्तत।। | 5-23-5a 5-23-5b |
पितरं तु परिप्रेप्सुः क्षत्रधर्मा यतव्रतः। सिद्धिं चास्य परां काङ्क्षञ्शोणाश्वः सन्न्यवर्तत।। | 5-23-6a 5-23-6b |
पद्मपत्रनिभांश्चाश्वान्मल्लिकाक्षान्स्वलङ्कृतान्। शैखण्डिः क्षत्रदेवस्तु स्वयं प्रत्वरयन्ययौ।। | 5-23-7a 5-23-7b |
दर्शनीयास्तु काम्भोजाः शुकपत्रपरिच्छदाः। वहन्तो नकुलं शीघ्रं तावकानाभिदुद्रुवुः।। | 5-23-8a 5-23-8b |
कृष्णास्तु मेघसङ्काशा अवहन्नुत्तमौजसम्। दुर्धर्षायाभिसन्धाय क्रुद्धं युद्धाय भारत।। | 5-23-9a 5-23-9b |
तथा तित्तिरिकल्माषा हया वातसमा जवे। अवहंस्तुमुले युद्धे सहदेवमुदायुधम्।। | 5-23-10a 5-23-10b |
दन्तवर्णास्तु राजानं कालवाला युधिष्ठिरम्। भीमवेगा नरव्याघ्रमवहन्वातरंहसः।। | 5-23-11a 5-23-11b |
हेमोत्तमप्रतिच्छन्नैर्हयैर्वातसमैर्जवे। अभ्यवर्तन्त सैन्यानि सर्वाण्येव युधिष्ठिरम्।। | 5-23-12a 5-23-12b |
राज्ञस्त्वनन्तरो राजा पाञ्चाल्यो द्रुपदोऽभवत्। जातरूपमयच्छत्रः सर्वैस्तैरभिरक्षितः।। | 5-23-13a 5-23-13b |
ललामैर्हरिभिर्युक्तः सर्वशब्दक्षमैर्युधि। राज्ञं मध्ये महेष्वासः शान्तभीरभ्यवर्तत।। | 5-23-14a 5-23-14b |
तं विराटोऽन्वयाच्छीघ्रं सह सर्वैर्महारथैः। केकयाश्च सिखण्डी च धृष्टकेतुस्तथैव च। स्वैः स्वैः सैन्यैः परिवृता मात्स्यराजानमन्वयुः।। | 5-23-15a 5-23-15b 5-23-15c |
तं तु पाटलिपुष्पाणां समवर्णा हयोत्तमाः। वहमाना व्यराजन्त मास्त्यस्यामित्रघातिनः।। | 5-23-16a 5-23-16b |
हरिद्रासमवर्णास्तु जवना हेममालिनः। पुत्रं विराटराजस्य सत्वरं समुदावहन्।। | 5-23-17a 5-23-17b |
इन्द्रगोपकवर्णैश्च भ्रातरः पञ्च केकयाः। जातरूपसमाभासाः सर्वे लोहितकध्वजाः।। | 5-23-18a 5-23-18b |
ते हेममालिनः शूराः सर्वे युद्धविशारदाः। वर्षन्त इव जीमूताः प्रत्यदृश्यन्त दंशिताः।। | 5-23-19a 5-23-19b |
आमपात्रनिकाशास्तु पाञ्चाल्यममितौजसम्। दत्तास्तुम्बुरुणा दिव्याः शिखण्डिनमुदावहन्।। | 5-23-20a 5-23-20b |
तथा द्वादशसाहस्राः पाञ्चालानां महारथाः। तेषां तु षट्सहस्राणि ये शिखण्डिनमन्वयुः।। | 5-23-21a 5-23-21b |
पुत्रं तु शिशुपालस्य नरसिंहस्य मारिष। आक्रीडन्तो वहन्ति स्म सारङ्गशबला हयाः।। | 5-23-22a 5-23-22b |
धृष्टकेतुस्तु चेदीनामृषभोऽतिबलोदितः। काम्भोजैः शबलैरश्वैरभ्यवर्तत दुर्जयः।। | 5-23-23a 5-23-23b |
बृहत्क्षत्रं तु कैकेयं सुकुमारं हयोत्तमाः। पलालधूमसङ्काशाः सैन्धवाः शीघ्रमावहन्।। | 5-23-24a 5-23-24b |
मल्लिकाक्षाः पद्मवर्णा बाह्लिजाताः स्वलङ्कृताः। शूरं शिखण्डिनः पुत्रमृक्षदेवमुदावहन्।। | 5-23-25a 5-23-25b |
रुक्मभाण्डप्रतिच्छन्नाः कौशेयसदृशा हयाः। क्षमावन्तोऽवहन्सङ्ख्ये सेनाबिन्दुमरिन्दमम्।। | 5-23-26a 5-23-26b |
युवानमवहन्युद्धे क्रौञ्चवर्णा हयोत्तमाः। काश्यस्याभिभुवः पुत्रं सुकुमारं महारथम्।। | 5-23-27a 5-23-27b |
श्वेतास्तु प्रतिविन्ध्यन्तं कृष्णग्रीवा मनोजवाः। यन्तुः प्रेष्यकरा राजन्राजपुत्रमुदावहन्।। | 5-23-28a 5-23-28b |
सुतसोमं तु योधाग्र्यं भीमपुत्रं महाबलम्। माषपुष्पसवर्णास्तमवहन्वाजिनो रणे।। | 5-23-29a 5-23-29b |
सहस्रसोमप्रतिमो बभूव पुरे कुरूणामुदयेन्दुनाम्नि। तस्मिञ्जातः सोमसंक्रन्दमध्ये यस्मात्तस्मात्सुतसोमोऽभवत्सः।। | 5-23-30a 5-23-30b |
नाकुलिं तु शतानीकं शालपुष्पनिभा हयाः। आदित्यतरुणप्रख्याः श्लाघनीयमुदावहन्।। | 5-23-31a 5-23-31b |
काञ्चनापिहितैर्योक्त्रैर्मयूरग्रीवसन्निभाः। द्रौपदेयं नरव्याघ्रं श्रुतकर्माणमाहवे।। | 5-23-32a 5-23-32b |
श्रुतकीर्तिं श्रुतनिधिं द्रौपदेयं हयोत्तमाः। ऊहुः पार्थसमं युद्धे चाषपत्रनिभा हयाः।। | 5-23-33a 5-23-33b |
यमाहुरध्यर्धगुणं कृष्णात्पार्थाच्च संयुगे। अभिमन्युं पिशङ्गास्तं कुमारमवहन्रणे।। | 5-23-34a 5-23-34b |
एकस्तु धार्तराष्ट्रेभ्यः पाण्डवान्यः समाश्रितः। तं बृहन्तो महाकाया युयुत्सुमवहन्रणे। `ये तु पुष्करसारस्य तुल्यवर्णा हयोत्तमाः'।। | 5-23-35a 5-23-35b 5-23-35c |
पलालकाण्डवर्णास्तु वार्धक्षेमिं तरस्विनम्। ऊहुः सुतुमुले युद्धे हया हृष्टाः स्वलङ्कृताः।। | 5-23-36a 5-23-36b |
कुमारं शितिपादास्तु रुक्मचित्रैरुरश्छदैः। सौचित्तिमवहद्युद्धे यन्तुः प्रेष्यकरा हयाः।। | 5-23-37a 5-23-37b |
रुक्मपीठावकीर्णास्तु कौशेयसदृशा हयाः। सुवर्णमालिनः क्षान्ताः श्रेणिमन्तमुदावहन्।। | 5-23-38a 5-23-38b |
रुक्ममालाधराः शूरा हेमपृष्ठाः स्वलङ्कृताः। काशिराजं नरश्रेष्ठं श्लाघनीयमुदावहन्।। | 5-23-39a 5-23-39b |
अस्त्राणां च धनुर्वेदे ब्राह्मे वेदे च पारगम्। तं सत्यधृतिमायान्तमरूणाः समुपावहन्।। | 5-23-40a 5-23-40b |
यः स पाञ्चालसेनानीद्रोणमंशमकल्पयत्। पारावतसवर्णास्तं धृष्टद्युम्नमुदावहन्।। | 5-23-41a 5-23-41b |
तमन्वयात्सत्यधृतिः सौचित्तिर्युद्धदुर्मदः। श्रेणिमान्वसुदानश्च पुत्रः काश्यस्य चाभिभूः।। | 5-23-42a 5-23-42b |
युक्तैः परमकाम्भोजैर्जवनैर्हेममालिभिः। भीषयन्तो द्विषत्सैन्यं यमवैश्रवणोपमाः।। | 5-23-43a 5-23-43b |
प्रभद्रकास्तु काम्भोजाः षट्सहस्राण्युदायुधाः। नानावर्णैर्हयैः श्रेष्ठैर्हेमवर्णरथध्वजाः।। | 5-23-44a 5-23-44b |
शरव्रातैर्विधुन्वन्तः शत्रून्विततकार्मुकाः। समानमृत्यवो भूत्वा धृष्टद्युम्नं समन्वयुः।। | 5-23-45a 5-23-45b |
बभ्रुकौशेयवर्णास्तु सुवर्णवरमालिनः। ऊहुरम्लानमनसश्चेकितानं हयोत्तमाः।। | 5-23-46a 5-23-46b |
इन्द्रायुधसवर्णैस्तु कुन्तिभोजो हयोत्तमैः। आयात्सदश्वैः पुरुजिन्मातुलः सव्यसाचिनः।। | 5-23-47a 5-23-47b |
अन्तरिक्षसवर्णास्तु तारकाचित्रिता इव। राजानं रोचमानं ते हयाः सङ्ख्ये समावहन्।। | 5-23-48a 5-23-48b |
कर्बुराः शितिपादास्तु स्वर्णजालपरिच्छदाः। जारासन्धिं हयाः श्रेष्ठाः सहदेवमुदावहन्।। | 5-23-49a 5-23-49b |
ये तु पुष्करनालस्य समवर्णा हयोत्तमाः। जवे श्येनसमाश्चित्राः सुदामानमुदावहन्।। | 5-23-50a 5-23-50b |
शशलोहितवर्णास्तु पाण्डुरोद्गतराजयः। पाञ्चाल्यं गोपतेः पुत्रं सिंहसेनमुदावहन्।। | 5-23-51a 5-23-51b |
पाञ्चालानां नरव्याघ्रो यः ख्यातो जनमेजयः। तस्य सर्षपपुष्पाणां तुल्यवर्णा हयोत्तमाः।। | 5-23-52a 5-23-52b |
माषवर्णाश्च जवना बृहन्तो हेममालिनः। दधिपृष्ठाश्चित्रमुखाः पाञ्चाल्यमवहन्द्रुतम्।। | 5-23-53a 5-23-53b |
शूराश्च भद्रकाश्चैव शरकाण्डनिभा हयाः। पद्मकिञ्जल्कवर्णाभा दण्डधारमुदावहन्।। | 5-23-54a 5-23-54b |
रासभारुणवर्णाभाः पृष्ठतो मूषिकप्रभाः। वल्गन्त इव संयत्ता व्याघ्रदत्तमुदावहन्।। | 5-23-55a 5-23-55b |
हरयः कालकाश्चित्राश्चित्रमाल्यविभूषिताः। सुधन्वानं नरव्याघ्रं पाञ्चाल्यं समुदावहन्।। | 5-23-56a 5-23-56b |
इन्द्राशनिसमस्पर्शा इन्द्रगोपकसन्निभाः। काये चित्रान्तराश्चित्राश्चित्रायुधमुदावहन्।। | 5-23-57a 5-23-57b |
बिभ्रतो हेपमालास्तु चक्रवाकोदरा हयाः। कोसलाधिपतेः पुत्रं सुक्षत्रं वाजिनोऽवहन्।। | 5-23-58a 5-23-58b |
शबलास्तु बृहन्तोऽश्वा दान्ता जाम्बूनदस्रजः। युद्धे सत्यधृतिं क्षेमिमवहन्प्रांशवः शुभाः।। | 5-23-59a 5-23-59b |
एकवर्णेन सर्वेण ध्वजेन कवचेन च। अश्वैश्च धनुषा चैव शुक्लैः शुक्लो न्यवर्तत।। | 5-23-60a 5-23-60b |
समुद्रसेनपुत्रं तु सामुद्रा रुद्रतेजसम्। अश्वाः शशाङ्कसदृशाश्चन्द्रसेनमुदावहन्।। | 5-23-61a 5-23-61b |
नीलोत्पलसवर्णास्तु तपनीयविभूषिताः। शैब्यं चित्ररथं सङ्ख्ये चित्रमाल्याऽवहन्हयाः।। | 5-23-62a 5-23-62b |
कलायपुष्पवर्णास्तु श्वेतलोहितराजयः। रथसेनं हयश्रेष्ठाः समूहुर्युद्धदुर्मदम्।। | 5-23-63a 5-23-63b |
यं तु सर्वमनुष्येभ्यः प्राहुः शूरतरं नृपम्। तं पटच्चरहन्तारं शुकवर्णाऽवहन्हयाः।। | 5-23-64a 5-23-64b |
चित्रायुधं चित्रमाल्यं चित्रवर्मायुधध्वजम्। ऊहुः किंशुकपुष्पाणां समवर्णा हयोत्तमाः।। | 5-23-65a 5-23-65b |
एकवर्णेन सर्वेण ध्वजेन कवचेन च। धनुषा रथवाहैश्च नीलैर्नीलोऽभ्यवर्तत।। | 5-23-66a 5-23-66b |
नानारूपै रत्नचिह्नैर्वरूथरथकार्मुकैः। वाजिध्वजपताकाभिश्चित्रैश्चित्रोऽभ्यवर्तत।। | 5-23-67a 5-23-67b |
ये तु पुष्करवर्णस्य तुल्यवर्णा हयोत्तमाः। ते रोचमानस्य सुतं हेमवर्णमुदावहन्।। | 5-23-68a 5-23-68b |
योधाश्च भद्रकाराश्च शरदण्डानुदण्डयः। श्वेताण्डाः कुक्कुटाण्डाभा दण्डकेतुं हयाऽवहन्।। | 5-23-69a 5-23-69b |
केशवे न हते सङ्ख्ये पितर्यथ नराधिपे। भिन्ने कपाटे पाण्डानां विद्रुतेषु च बन्धुषु।। | 5-23-70a 5-23-70b |
भीष्मादवाप्य चास्त्राणि द्रोणाद्रामात्कृपात्तथा। अस्त्रैः समत्वं सम्प्राप्य रुक्मिकर्णार्जुनाच्युतैः।। | 5-23-71a 5-23-71b |
इयेष द्वारकां हन्तुं कृत्स्नां जेतुं च मेदिनीम्। निवारितस्ततः प्राज्ञैः सुहृद्भिर्हितकाम्यया।। | 5-23-72a 5-23-72b |
वैरानुबन्धमुत्सज्य स्वराज्यमनुशास्ति यः। स सागरध्वजः पाण्ड्यश्चन्द्ररश्मिनिभैर्हयैः।। | 5-23-73a 5-23-73b |
वैडूर्यजालसञ्छन्नैर्वीर्यद्रविणमाश्रितः। दिव्यं विस्फारयंश्चापं द्रोणमभ्यद्रवद्बली।। | 5-23-74a 5-23-74b |
आरकूटकवर्णाश्च हयाः पाण्ड्यानुयायिनाम्। अवहन्रथमुख्यानामयुतानि चतुर्दश।। | 5-23-75a 5-23-75b |
नानावर्णेन रूपेण नानाकृतिमुखा हयाः। रथचक्रध्वजं वीरं घटोत्कचमुदावहन्।। | 5-23-76a 5-23-76b |
भारतानां समेतानामुत्सृज्यैको मतानि यः। गतो युधिष्ठिरं भक्त्या त्यक्त्वा सर्वमभीप्सितम्।। | 5-23-77a 5-23-77b |
लोहिताक्षं महाबाहुं युयुत्सुं मकरध्वजम्। महासत्वा महाकायाः सौवर्णस्यन्दने स्थितम्।। | 5-23-78a 5-23-78b |
सुवर्णवर्णा धर्मज्ञमनीकस्थं युधिष्ठिरम्। राजश्रेष्ठं हयश्रेष्ठाः सर्वतः पृष्ठतोऽन्वयुः।। | 5-23-79a 5-23-79b |
वर्णैरुच्चावचैरन्यैः सदश्वानां प्रभद्रकाः। सन्न्यवर्तन्त युद्धाय बहवो देवरूपिणः।। | 5-23-80a 5-23-80b |
ते यत्ता भीमसेनेन सहिताः काञ्चनध्वजाः। प्रत्यदृश्यन्त राजेन्द्र सेन्द्रा इव दिवौकसः।। | 5-23-81a 5-23-81b |
अत्यरोचत तान्सर्वान्धृष्ठद्युम्नः समागतान्। सर्वाण्यति च सैन्यानि भारद्वाजो व्यरोचत।। | 5-23-82a 5-23-82b |
अतीव शुशुभे तस्य ध्वजः कृष्णाजिनोत्तरः। कमण्डलुर्महाराज जातरूपमयः शुभः।। | 5-23-83a 5-23-83b |
ध्वजं तु भीमसेनस्य वै2डूर्यमणिलोचनम्। भ्राजमानं महासिंहं राजन्तं दृष्टवानहम्।। | 5-23-84a 5-23-84b |
ध्वजं तु कुरुराजस्य पाण्डवस्य महौजसः। दृष्टवानस्मि सौवर्णं सोमं ग्रहगणान्वितम्।। | 5-23-85a 5-23-85b |
मृदङ्गौ चात्र विपुलौ दिव्यौ नन्दोपनन्दकौ। यन्त्रेणाहन्यमानौ च सुस्वनौ हर्षवर्धनौ।। | 5-23-86a 5-23-86b |
शरभं पृष्ठसौवर्णं नकुलस्य महाध्वजम्। अपश्याम रथेत्युग्रं भीषयाणमवस्थितम्।। | 5-23-87a 5-23-87b |
हंसस्तु राजतः श्रीमान्ध्वजे घण्टापताकवान्। सहदेवस्य दुर्धर्षो द्विषतां शोकवर्धनः।। | 5-23-88a 5-23-88b |
पञ्चानां द्रौपदेयानां प्रतिमाध्वजभूषणम्। धर्ममारुतशक्राणामश्विनोश्च महात्मनोः।। | 5-23-89a 5-23-89b |
अभिमन्योः कुमारस्य शार्ङ्गपक्षी हिरण्मयः। रथे ध्वजवरो राजंस्तप्तचामीकरोज्ज्वलः।। | 5-23-90a 5-23-90b |
घटोत्कचस्य राजेन्द्र ध्वजे गृध्रो व्यरोचत। अश्वाश्च कामगास्तस्य रावणस्य पुरा यथा।। | 5-23-91a 5-23-91b |
माहेन्द्रं च धनुर्दिव्यं धर्मराजे युधिष्ठिरे। वायव्यं भीमसेनस्य धनुर्दिव्यमभून्नृप।। | 5-23-92a 5-23-92b |
त्रैलोक्यरक्षणार्थाय ब्रह्मणा सृष्टमायुधम्। तद्दिव्यमजरं चैव फाल्गुनार्थाय वै धनुः।। | 5-23-93a 5-23-93b |
वैष्णवं नकुलायाथ सहदेवाय चाश्चिजम्। घटोत्कचाय पौलस्त्यं धनुर्दिव्यं भयामकम्।। | 5-23-94a 5-23-94b |
रौद्रमाग्नेयकौबेरं याम्यं गिरिशमेव च। पञ्चानां द्रौपदेयानां धनूरत्नानि भारत।। | 5-23-95a 5-23-95b |
रौद्रं धनुर्वरं श्रेष्ठं लेभे यद्रोहिणीसुतः। तत्तुष्टः प्रददौ रामः सौभद्राय महात्मने।। | 5-23-96a 5-23-96b |
एते चान्ये च बहवो ध्वजा हेमविभूषिताः। तत्रादृश्यन्त शूराणां द्विषतां शोकवर्धनाः।। | 5-23-97a 5-23-97b |
तदभूद्ध्वजसम्बाधमकापुरुषसेवितम्। द्रोणानीकं महाराज पटे चित्रमिवार्पितम्।। | 5-23-98a 5-23-98b |
शुश्रुवुनार्मगोत्राणि वीराणां संयुगे तदा। द्रोणमाद्रवतां राजन्स्वयंवर इवाहवे।। | 5-23-99a 5-23-99b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि संशप्तकवधपर्वणि द्वादशदिवसयुद्धे त्रयोविंशोऽध्यायः।। 23 ।। |
5-23-1 रथचिह्नानि हयान् ध्वजांश्चेत्यर्थः।। 5-23-3 व्यायच्छन्तं निवर्तमानम्।। 5-23-4 सितनीलारुणो वर्णः सारङ्गसदृशश्च सः।। 5-23-5 पारावतकपोताभः सितनीलसमन्वयात्।। 5-23-6 शोणः कोकनदच्छविः।। 5-23-7 मल्लिकाक्षान्निर्मलेक्षणान्।। 5-23-8 महाललाटजधनस्कन्धवक्षोजवा हयाः। दीर्घग्रीवायता हस्वमुष्काः काम्भोजकाः स्मृताः। शुकपत्रपरिच्छदाः शुकपत्राभरोमाणः।। 5-23-11 दन्तवर्णः गजदन्तगौराः।। 5-23-14 श्वेतं ललाटमध्यश्थं तारारूपं हयस्य यत्। ललामं चापि तत्प्राहुर्ललामोऽश्वस्तदन्वितः। सकेसराणि रोमाणि सुवर्णभानि यस्य तु। हरिःस स वर्णतोऽश्वस्तु पीतकौशेयसन्निभः।। 5-23-16 पाटलिपुष्पाणां समवर्णाः श्वेतरक्ताः।। 5-23-17 विराटराजस्य पुत्र उत्तरम्।। 5-23-20 आमपात्रनिकाशाः मलिनश्वेताः।। 5-23-26 क्षमावन्तो विनीताः।। 5-23-28 प्रेष्यकराः इच्छानुविधायिनः।। 5-23-30 सहस्रसोमप्रतिमः सोमसहस्रसमः सौम्यतम इत्यर्थः। तस्मिन् उदयेन्दुनाम्नि उदयेन्दुपर्याये पुरे शक्रप्रस्थ एव सोमसङ्क्रन्दः सोमाभिषवणं तस्य मध्ये। तमधिकृत्य तत्फेनेनेत्यर्थस्तस्माद्धोतोः।। 5-23-31 शालपुष्पनिभाः रक्तपीताः।। 5-23-32 योक्त्रैराबन्धैः। मयूरग्रीवो मरकतविशेषः।। 5-23-34 पिशङ्गाः कपिलाः।। 5-23-36 पलालकाण्डो निष्फलव्रीहिदण्डस्तद्वर्णाः।। 5-23-37 रुक्मपीठेन रुक्मवर्णेन पीठेन पृष्ठेनावकीर्णा व्याप्ताः।। 5-23-40 अरुणा अव्यक्तरागाः।। 5-23-41 धृष्टद्युम्नस्य पुनर्वचनं द्रोणहन्तृत्वदृढीकरणार्थम्।। 5-23-46 बभ्रुकौशेयवर्णाः पिङ्गगौराः ।। 5-23-47 इन्द्रायुधसवर्णैंस्त्रिवर्णैः।। 5-23-48 अन्तरिक्षसवर्णा नीलाः ।। 5-23-49 कर्बुराश्चित्राः।। 5-23-53 माषवर्णाः मलिनश्यामाः।। 5-23-54 भद्रकाः शोभनशिरसः। शरकाण्डनिभाः सितगौराः।। 5-23-55 रासभारुणवर्णाभा अरुणमलिनाः। मूषिकप्रभाः मलिनश्वेताः।। 5-23-56 कालकाः कृष्णमस्तकाः।। 5-23-57 चित्रान्तरा विचित्रावकाशाः। चित्रा अद्भुतदर्शनाः।। 5-23-58 चक्रवाकोदरा ईषच्छ्वेताः।। 5-23-63 कलायपुष्पवर्णाः मिश्रश्यामाः।। 5-23-64 पटच्चराणामसुरविशेषाणां हन्तारं समुद्राधिपम्।। 5-23-69 योधा युद्धक्षमाः। भद्रकाराः शोभनक्रियाः। शरदण्डः शरप्रकाण्ड इव अनुदण्डिः पृष्ठवंशो येषाम्। सितगौरपृष्ठा इत्यर्थः।। 5-23-70 कपाटे नगरविशेषे।। 5-23-75 आटरूषकवर्णाभाः इति झ पाठः। तत्र आटरूषकस्य वासकस्य कुसुमं तद्वर्णसदृशवर्णा इत्यर्थः।। 5-23-78 हया अवहन् इति पूर्वस्मादनुकृष्यते।। 5-23-79 सुवर्णवर्णा इति पूर्वोत्तरान्वयि।। 5-23-86 नन्दोपनन्दकौ नाम्ना।। 5-23-23 त्रयोविंशोऽध्यायः।। Template:Footer