महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-022

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द्रोणपराक्रमहृष्टेन दुर्योधनेन कर्णं सम्बोध्य भीमसेनाद्यवज्ञाने कृते कर्णेन भीमादीनां प्रशंसनपूर्वकमनवज्ञेयत्वकथनम्।। 1 ।।

धृतराष्ट्र उवाच। 5-22-1x
भारद्वाजेन भग्नेषु पाण्डवेषु महामृधे।
पाञ्चालेषु च सर्वेषु कश्चिदन्योऽभ्यवर्तत।।
5-22-1a
5-22-1b
आर्यां युद्धे मतिं कृत्वा क्षत्रियाणां यशस्करीम्।
असेवितां कापुरुषैः सेवितां पुरुषर्षभैः।।
5-22-2a
5-22-2b
स हि वीरोन्नतः शूरो यो भग्नेषु निवर्तते।
अहो नासीत्पुमान्कश्चिद्दृष्ट्वा द्रोणं व्यवस्थितम्।।
5-22-3a
5-22-3b
जृम्भमाणमिव व्याघ्रं प्रभिन्नमिव कुञ्जरम्।
त्यजन्तमाहवे प्राणान्सन्नद्धं चित्रयोधिनम्।।
5-22-4a
5-22-4b
महेष्वासं नरव्याघ्रं द्विषतां भयवर्धनम्।
कृतज्ञं सत्यनिरतं दुर्योधनहितैषिणम्।।
5-22-5a
5-22-5b
भारद्वाजं तथाऽनीके दृष्ट्वा शूरमवस्थितम्।
के शूराः सन्न्यवर्तन्त तन्ममाचक्ष्व सञ्जय।।
5-22-6a
5-22-6b
सञ्चय उवाच। 5-22-7x
तान्दृष्ट्वा चलितान्सङ्ख्ये प्रणुन्नान्द्रोणसायकैः।
पाञ्चालान्पाण्वान्मात्स्यान्सृञ्जयांश्चेदिकेकयान्।।
5-22-7a
5-22-7b
द्रोणचापविमुक्तेन शरौघेणाशु हारिणा।
सिन्धोरिव महौधेन हियमाणान्यथा प्लवान्।।
5-22-8a
5-22-8b
कौरवाः सिंहनादेन नानावाद्यस्वनेन च।
रथद्विपनरांश्चैव सर्वतः समवारयन्।।
5-22-9a
5-22-9b
तान्पश्यन्सैन्यमध्यस्थो राजा स्वजनसम्वृतः।
दुर्योधनोऽब्रवीत्कर्णं प्रहृष्टः प्रहसन्निव।।
5-22-10a
5-22-10b
दुर्योधन उवाच। 5-22-11x
पश्य राधेय पाञ्चालान्प्रणुन्नान्द्रोणसायकैः।
सिंहेनेव मृगान्वन्यांस्त्रासितान्दृढधन्वना।।
5-22-11a
5-22-11b
नैते जातु पुनर्युद्धमीहेयुरिति मे मतिः।
यथा तु भग्ना द्रोणेन वातेनेव महाद्रुमाः।।
5-22-12a
5-22-12b
अर्द्यमानाः शरैरेते रुक्मपुङ्खैर्महात्मना।
पथा नैकेन गच्छन्ति घूर्णमानास्ततस्ततः।।
5-22-13a
5-22-13b
सन्निरुद्धाश्च कौरव्यैर्द्रोणेन च महात्मना।
एतेऽन्ये मण्डलीभूताः पावकेनेव कुञ्जराः।।
5-22-14a
5-22-14b
भ्रमरैरिव चाविष्टा द्रोणस्य निशितैः शरैः।
अन्योन्यं समलीयन्त पलायनपरायणाः।।
5-22-15a
5-22-15b
एष भीमो महाक्रोधी हीनः पाण्डवसृञ्जयैः।
मदीयैरावृतो योधैः कर्ण नन्दयतीव माम्।।
5-22-16a
5-22-16b
व्यक्तं द्रोणमयं लोकमद्य पश्यति दुर्मतिः।
निराशो जीवितान्नूनमद्य राज्याच्च पाण्डवः।।
5-22-17a
5-22-17b
कर्ण उवाच। 5-22-18x
नैष जातु महाबाहुर्जीवन्नाहवमुत्सृजेत्।
न चेमान्पुरुषव्याघ्र सिंहनादान्सहिष्यति।।
5-22-18a
5-22-18b
न चापि पाण्डवा युद्धे भज्येरन्निति मे मतिः।
शूराश्च बलवन्तश्च कृतास्त्रा युद्धदुर्मदाः।।
5-22-19a
5-22-19b
विषाग्निद्यूतसङ्क्लेशान्वनवासं च पाण्डवाः।
स्मरमाणा न हास्यन्ति सङ्ग्राममिति मे मतिः।।
5-22-20a
5-22-20b
निवृत्तो हि महाबाहुरमितौजा वृकोदरः।
वरान्वरान्हि कौन्तेयो रथोदारान्हनिष्यति।।
5-22-21a
5-22-21b
असिना धनुषा शक्या हयैर्नागैर्नरै स्थैः।
आयसेन च दण्डेन व्रातान्व्रातान्हनिष्यति।।
5-22-22a
5-22-22b
तमेनमनुवर्तन्ते सात्यकिप्रमुखा रथाः।
पाञ्चालाः केकया मास्त्याः पाश्डवाश्च विशेषतः।।
5-22-23a
5-22-23b
शूराश्च बलवन्तश्च विक्रान्ताश्च महारथाः।
विनिघ्नन्तश्च भीमेन संरब्धेनाभिचोदिताः।।
5-22-24a
5-22-24b
ते द्रोणमभिवर्तन्ते सर्वतः कुरुपुङ्गवाः।
वृकोदरं परीप्सन्तः सूर्यमभ्रगणा इव।।
5-22-25a
5-22-25b
`समरेषु तु निर्दिष्टाः पाण्डवाः कृष्णबान्धवाः।
पाञ्चालाः केकया मात्स्याः पाण्डवेयाश्च सर्वशः।।
5-22-26a
5-22-26b
शूराश्च बलवन्तश्च विक्रान्ताश्च महारथाः।
हीमन्तः शत्रुमरणे निपुणाः पुण्यलक्षणाः।।
5-22-27a
5-22-27b
बहवः पार्थिवा राजंस्तेषां वशगता रणे।
मावमंस्थाः पाण्डवांस्त्वं नारायणपुरोगमान्।।
5-22-28a
5-22-28b
एकायनगता ह्येते पीडयेयुर्यतव्रतम्।
अरक्षमाणं शलभा यथा दीपं मुमूर्षवः।।
5-22-29a
5-22-29b
असंशयं कृतास्त्राश्च पर्याप्ताश्चापि वारणे।
अतिभारमहं मन्ये भारद्वाजे समाहितम्।।
5-22-30a
5-22-30b
ते शीघ्रमनुगच्छामो यत्र द्रोणो व्यवस्थितः।
कोका इव महानागं मा वै हन्युर्यतव्रतम्।।
5-22-31a
5-22-31b
सञ्जय उवाच। 5-22-32x
राधेयस्य वचः श्रुत्वा राजा दुर्योधनस्ततः।
भ्रातृभिः सहितो राजन्प्रायाद्द्रोणरथं प्रति।।
5-22-32a
5-22-32b
तत्रारावो महानासीदेकं द्रोणं जिघांसताम्।
पाण्डवानां निवृत्तानां नानावर्णैर्हयोत्तमैः।।
5-22-33a
5-22-33b
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि संशप्तकवधपर्वणि
द्वादशदिवसयुद्धे द्वाविंशोऽध्यायः।। 22 ।।

5-22-1 अभ्यवर्तत किम्।। 5-22-31 कोको वृकः।। 5-22-22 द्वाविंशोऽध्यायः।। Template:Footer

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